आचार्य जिनेश्वरसूरि (द्वितीय)

खरतरगच्छ के प्रारंभिक काल में 11वीं सदी में आचार्य वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि हुए, जिन्होंने दुर्लभराज की सभा में “खरतर” विरुद प्राप्त किया था। उसी…

आचार्य जिनेश्वरसूरि

खरतर परंपरा जैन धर्म में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। इसका मूल कारण चैत्यवास का उन्मूलन और सुविहित मार्ग का प्रचार है। आज से लगभग…