आचार्य जिनसमुद्रसूरि

आचार्य जिनचन्द्रसूरि जी के पट्टधर श्री जिनसमुद्रसूरि जी हुए। आप उच्च कोटि के साधक एवं उद्भट विद्वान् थे। आपका जन्म सम्वत 1506 में हुआ था। आपके पिता बाड़मेर निवासी, पारख गोत्रीय, देकोसाह थे। आपकी माता का नाम देवल देवी था।

सम्वत 1521 में आपकी दीक्षा हुई और नाम कुलवर्धन मुनि रखा गया। दीक्षा नंदी महोत्सव मण्डन-दुर्ग निवासी, श्रीमाल वंशीय सोनपाल ने पुंजपुर में किया। सम्वत 1533 माघ सुदि 13 के दिन, जैसलमेर में श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। नंदी महोत्सव संघपति श्रीमाल वंशीय सोनपाल द्वारा कराया गया।

सम्वत 1536 में, रावल देवकर्ण के राज्यकाल में, जैसलमेर के अष्टापद प्रासाद (मंदिर) में कुंथुनाथ भगवान् एवं ऊपर शांतिनाथ भगवान् की प्रतिष्ठा, श्री जिनसमुद्रसूरि जी ने श्री जिनचन्द्रसूरि जी के साथ कराई थी। सम्वत 1541 में जिनसमुद्रसूरि जी ने सागरचंद्रसूरि परंपरा के देवतिलक उपाध्याय को दीक्षा दी थी।

श्री जिनसमुद्रसूरि जी के शासनकाल में अनेक प्रौढ़ विद्वान् हुए, जिन्होंने साहित्य सर्जना कर साहित्य के भंडार को समृद्ध किया। आपके शासनकाल में ही सम्वत 1544 में कमलसंयम उपाध्याय ने उत्तराध्ययन सूत्र पर सर्वार्थसिद्धि नामक 14000 श्लोक प्रमाण महत्वपूर्ण टीका रची थी।

मालवा के मण्डुप दुर्ग (माण्डू) के श्रीमाल वंशीय, बहकट गोत्रीय, दानवीर श्रेष्ठि जसधीर श्री जिनसमुद्रसूरि जी के परम भक्त थे।

संघ उन्नति के लिए “पंच नदी साधना”, सर्व प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि जी ने की थी। आचार्य श्री जिनसमुद्रसूरि जी ने भी पंच नदी साधना की और सोम यक्ष आदि साधे। परम पवित्र चारित्र के पालक आचार्य श्री का स्वर्गवास सम्वत 1555 में अहमदाबाद में हुआ।


क्रमांक 25 – आचार्य जिनसमुद्रसूरि
संकलन – सरला बोथरा
आधार – स्व. महोपाध्याय विनयसागरजी रचित खरतरगच्छ का बृहद इतिहास

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