आचार्य जिनचंद्रसूरि
आचार्य जिनलब्धिसूरि के पट्टधर श्री जिनचंद्रसूरि जी हुए। मुनि सहजज्ञान रचित “श्री जिनचंद्रसूरि विवाहलउ” के अनुसार आपका जन्म मरुदेश के कुसुमाण गाँव में हुआ। आपके पिता का नाम मंत्री केल्हा था और माता का नाम सरवस्ती था। आपका बचपन का नाम पाताल कुमार था।
सम्वत 1380 में दिल्ली नगर के श्रेष्ठि रयपति का विशाल यात्री संघ जब कुसुमाणे में आया, तब मंत्री केल्हा उसमें सपरिवार सम्मिलित हो गए। क्रमशः संघ शत्रुंजय महातीर्थ पहुंचा। वहां पर गच्छनायक दादा जिनकुशलसूरि जी का वैराग्यमय उपदेश सुनकर पाताल कुमार को दीक्षा लेने के भाव हुए। गुरुदेव ने वासक्षेप देकर उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार किया।
कुशल गुरुदेव ने आषाढ़ वदि 6 के दिन शत्रुंजय पहाड़ पर आदिनाथ भगवान के समक्ष महोत्सवपूर्वक आपको दीक्षा दी और यशोभद्र नाम रखा। आपके साथ देवभद्र जी की भी दीक्षा हुई थी। सम्वत 1381 वैशाख वदी 6 के दिन यशोभद्र जी और देवभद्र जी की बड़ी दीक्षा पाटण में श्री जिनकुशलसूरि जी के हस्ते हुई। आपने अमृतचंद गणि के पास विद्याध्ययन किया।
यशोभद्र मुनि की योग्यता देखकर श्री जिनलब्धिसूरि जी ने अपने अंतिम समय में आपको अपने पद पर प्रतिष्ठित करने की शिक्षा दी। तदनुसार तरुणप्रभाचार्य ने सम्वत 1406 मिति माघ सुदि 10 को जैसलमेर में आपको गच्छनायक पद पर प्रतिष्ठित किया। और आपका नाम आचार्य जिनचंद्रसूरि रखा गया।
सम्वत 1406 में जैसलमेर में आचार्य जिनचंद्रसूरि ने मुनि सोमप्रभ को वाचनाचार्य पद प्रदान किया। आगे चलकर मुनि सोमप्रभ ही आचार्य जिनचंद्रसूरि के पट्टधर हुए।
सम्वत 1414 आषाढ़ वदि 13 के दिन स्तम्भ तीर्थ में आचार्य जिनचंद्रसूरि का स्वर्गवास हुआ।
क्रमांक 18 – आचार्य जिनचंद्रसूरि
संकलन – सरला बोथरा
आधार – स्व. महोपाध्याय विनयसागरजी रचित खरतरगच्छ का बृहद इतिहास