आचार्य अभयदेवसूरि के पट्ट पर जिनवल्लभसूरि हुए। वे मूलतः आशिका नगरी (हांसी) के निवासी थे। उनके पिता बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए थे। अतः…
संवेग रंगशाला के रचयिता श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरि हुए। आपका जीवन वृतांत हमें “प्रभावक चरित्र” नामक ग्रन्थ से प्राप्त होता है।…
आचार्य जिनेश्वरसूरि के पट्ट पर सूरियों में श्रेष्ठ श्री जिनचंद्रसूरि हुए। वे नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के वरिष्ठ गुरुभ्राता थे। खरतरगच्छ की परंपरा में जिनचंद्रसूरि के…
आचार्य बुद्धिसागरसूरि मध्य देश के निवासी थे। उनके पिताजी का नाम कृष्ण था। इनका बचपन का नाम श्रीपति था और वे जिनेश्वरसूरि के भाई थे।…
खरतर परंपरा जैन धर्म में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। इसका मूल कारण चैत्यवास का उन्मूलन और सुविहित मार्ग का प्रचार है। आज से लगभग…
लाखों को जैन बनानेवाला गच्छ, जिसमें चार दादा गुरुदेव जैसी महान विभूतियाँ हुई, उसकी शुरुआत कैसे हुई, आओ जानें। खरतर परंपरा श्रृंखला का आरम्भ खरतरगच्छ…
दासानुदासा इव सर्वदेवा यदीय पदाब्जतले लुठंति मरुस्थलीकल्पतरुः स जीयात् युगप्रधानो जिनदत्तसूरिः ।।१।। चिंतामणिः कल्पतरूर्वराकौ कुर्वन्ति भव्याः किमु कामगव्या प्रसीदतः श्रीजिनदत्त सूरे सर्वे पदा हस्तिपदे प्रविष्टाः …