आचार्य जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) के पट्ट पर जिनप्रबोधसूरि हुए। आप बड़े भारी विद्वान् और प्रभावक थे। विवेकसमुद्र गणि रचित “श्री जिनप्रबोधसूरि चतुः सप्ततिका” के अनुसार आपका…
खरतरगच्छ के प्रारंभिक काल में 11वीं सदी में आचार्य वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि हुए, जिन्होंने दुर्लभराज की सभा में “खरतर” विरुद प्राप्त किया था। उसी…
महान वादजयी जिनपतिसूरि के शिष्य समुदाय में उपाध्याय जिनपाल प्रमुख थे। आपकी दीक्षा सम्वत 1225 में पुष्कर नगर में हुई। सम्वत 1269 में जालौर के…
दादा गुरुदेव मणिधारी जिनचंद्रसूरि के पट्टधर श्री जिनपतिसूरि हुए। आपका जन्म विक्रमपुर में मालू गोत्रीय यशोवर्धन की धर्मपत्नी सुहवदेवी की रत्नकुक्षि से सम्वत 1210 में…
दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि जी के पट्टधर, सूर्य के समान तेजस्वी आचार्य श्री जिनचंद्रसूरि, मणिधारी दादा गुरुदेव के नाम से जाने जाते हैं। असाधारण व्यक्तित्व…
भगवान महावीर की धर्म-परंपरा को जीवित एवं विशुद्ध बनाये रखने के लिए समय समय पर अनेक अमृत-पुरुष हुए। उनमें आचार्य जिनदत्तसूरि जैसे नवयुग प्रवर्त्तक महापुरुष…
आचार्य अभयदेवसूरि के पट्ट पर जिनवल्लभसूरि हुए। वे मूलतः आशिका नगरी (हांसी) के निवासी थे। उनके पिता बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए थे। अतः…
संवेग रंगशाला के रचयिता श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरि हुए। आपका जीवन वृतांत हमें “प्रभावक चरित्र” नामक ग्रन्थ से प्राप्त होता है।…
आचार्य जिनेश्वरसूरि के पट्ट पर सूरियों में श्रेष्ठ श्री जिनचंद्रसूरि हुए। वे नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के वरिष्ठ गुरुभ्राता थे। खरतरगच्छ की परंपरा में जिनचंद्रसूरि के…
आचार्य बुद्धिसागरसूरि मध्य देश के निवासी थे। उनके पिताजी का नाम कृष्ण था। इनका बचपन का नाम श्रीपति था और वे जिनेश्वरसूरि के भाई थे।…